भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

या रुकी रहूँ यूँ ही... / प्रियंका पण्डित

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

एक क़दम आगे बढ़ाऊँ
या दो क़दम पीछे
समझ नहीं पाती हूँ
जब भी निकलती हूँ
सब कुछ वहीं छोड़कर
पूरा का पूरा निकलती हूँ
मकान, दीवारें, छतें और
दरवाज़ों की दरारें तक भी
फिर जहाँ पहुँचती हूँ
वहाँ मेरे अलावा बहुत कुछ होता है

मुझे मुझ तक पहुँचने के लिए
समझ नहीं आ रहा
एक क़दम आगे बढ़ाऊँ
या दो क़दम पीछे