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यात्रायें / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
यात्राएँ छोटी हों
या कि बड़ी
होती हैं आनंद भरी
राहों में
कितने ही मिलते
स्वागत करते गाँव नगर
होंठों पर थोड़ा
मुसकाकर
हैं बतलाते नेक डगर
यात्राएँ रचती हैं
नेह घरी
होती हैं आनंद भरी
पथ में
पेड़ों की छायाएँ
और हवाएँ दुलरायें
नीर पिलाती
इठलाती हैं
पावन सरिता-कन्याएँ
यात्राएँ रसवंती
पथ -गगरी
होती हैं आनंद भरी
राहों के शूल
भरा करते
दुगुना साहस पग पग में
पग-पग पर कर्म
उमड़ता है
जोश उफनता रग-रग में
यात्राएँ अनुभव की
फलित गरी
होती हैं आनंद भरी