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याद / दिनेश कुमार शुक्ल

जगी तुम्हारी याद
रात को चीर-चीर कर
क्षत-विक्षत थे स्वप्न
उड़ रहे फटे पत्र से

फटता था आकाश
हृदय-सा

साँय-साँय चलता था पंखा
कमरा बन्द-उड़ रहा था
पंखे से बचता टकराता
कपोत बनकर मन