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याद करो वह दिन! / सुरजन परोही

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याद करो वह दिन!
जहाज में बैठे महीनों गुजार दिए
उस समय सब कोई जहाजी थे
ना कोई सनातन और ना कोई समाजी थे
ना कोई मुल्ला और ना हाजी थे
एक साथ खाना पीना और एक ही
चीलम में सब दम जगाते थे।
याद करो वह दिन!
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र
भाई-भाई थे हिन्दू और मुसलमान
नीचे समुद्र की लहरें और ऊपर आसमान
उलआ सीधा हवा का रुख, आँधी और तूफान
कंधे से कन्धा मिलाकर वे
राम रहीम के गुण गाते थे।
आज धर्म का झगड़ा, ऊँच नीच
के भेदभाव
अमीर गरीब के रगड़ा, और
पोलिटिक्स के दबाब ने हमें बहुत दूर कर दिया।
ना रहा जहाजी का नाता, और ना बिरादरी का दसतूर
एक सौ पचीस साल के बाद हमें
कर दिया बहुत दूर।
बहुत आगे बह जाने के बाद जब
मुड़ कर देखा
तब पता चला कि हम कितना पिछड़ गए हैं।