भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
याद तुम्हारी आई माँ / सुदर्शन रत्नाकर
Kavita Kosh से
जब याद तुम्हारी आई माँ
तब आँखें भर-भर आईं माँ
बचपन गया बुढ़ापा आया
मेरे संग-सँग आई माँ
सम्बंधों के अहसासों को
कभी भूल न पाई माँ
मेरी ख़ातिर तूने हरदम
बाबा से लड़ी लड़ाई माँ
कई बार तू भूखी सोई
पर रोटी मुझे खिलाई माँ
सर्दी में रही ठिठुरती
ओढ़ाकर मुझे रज़ाई माँ
क्यों भूलूँ उपकार तुम्हारे
तू प्यार भरी कविताई माँ।