भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यादें / केशव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यादों के फूल आज फिर खिले
आखिर क्यों हम फिर उस मोड़ पर मिले

दिन कितने
तपती दुपहरों से गुज़र ढले
रेत हुईं
शामें
फिर मन की घाटी में
पगलाई रातें
भ्रम में भी हम इतना दूर चले