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यादों का घिर आया / बाबा बैद्यनाथ झा
Kavita Kosh से
सावन, यादों का घिर आया॥
उन अतीत यादों को लेकर,
नभ में बादल छाया। सावन,
यादों का घिर आया॥
मादकता छाई है घन में,
मत्त मयूरी नाचे वन में,
आज व्यथित मेरे तन-मन में,
कैसा अनल जगाया।
सावन, यादों का घिर आया॥
मिलनातुर हो बादल तरसे,
विरह-व्यथा जल रिमझिम बरसे,
कामदेव के कोमल शर से,
मर्माहत है काया।
सावन, यादों का घिर आया॥
ओ निर्मम प्रिय जल्दी आ जा,
इस पावस में हृदय जुड़ा जा,
आज जगत को क्षणिक भुला जा,
अबतक बहुत रुलाया।
सावन, यादों का घिर आया॥