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यार मिल जावो गले से अब तो फागुन आ गया / महेन्द्र मिश्र

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ये हुस्न का है दौलत रखना छिपा-छिपा के।
उन आशिकों से हरदम चलना बचा-बचा के।

अपनी रसीली बातें मुझको सुना-सुना के।
घायल मुझे न करना आँखे लड़ा-लड़ा के।

मुस्कान जान लेती हँस-हँस के वो हँसा के,
दिल ले लिया हमारा तिरछी बना-बना के

बर्बाद कर दिया है बिजुरी गिर-गिर के।
क्या ले रहे हो बदले नस्तर-चुभा-चुभा के।

काबू में कर लिया दिल खंजर दिखा-दिखा के
अब तो महेन्द्र प्यारे गरवा लगा-लगा के।
मिट्टी मिला रहे हो दिल को जला-जला के