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युग का मौन वातावरण! / बलबीर सिंह 'रंग'
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युग का मौन वातावरण!
प्रलय प्रेरित मंत्र जागे,
मुक्त हो पर तंत्र जागे,
चेतना के प्राण छू कर-
सुप्त जीवन यंत्र जागे।
व्योम व्याकुल है धरा के चूमने को चरण!
युग का मौन वातावरण!
आज का मानव न दुर्बल,
आज का मानव न असफल,
लय हुआ विध्वंस कल में-
आज के निर्माण में बल।
स्वप्न भी करने चला अब सत्य का आचरण!
युग का मौन वातावरण!
जीर्ण कुटियों की कहानी,
भग्न हृदयों की निशानी,
चिर-विकल जनता जनार्दन-
की खुली अवरुद्ध वाणी
बधिर बनकर रह न सकते देव अशरण शरण!
युग का मौन वातावरण!