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युग क्या होते और नहीं? / सुनीता जैन
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वे लाख कहें, यह युग
प्रेम की अनुभूति का नहीं,
अभिव्यक्ति का नहीं,
प्रेम से प्रेम का नहीं
तुम दर्पण में एक बार
अपने को अवश्य देखना,
खेत में उगते अंकुर को
पानी देना,
मेले में रोते बच्चे को
गोदी लेलेना
तुम जानोगे स्वयं ही
कि जो वे कहते हैं
वह उनका सच हो सकता है
वे जो जीते हैं
वह उनका युग हो सकता है
पर युग क्या होते और नहीं?
मैं पिछले में जीती हूँ
तुम क्यों अगले के
दूत नहीं?