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युगावसान / प्रभात

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हज़ारों सालों से वह कृषक परिवार
खेती करता आ रहा था
जेल का नाम उस परिवार ने
इक्कीसवीं शताब्दी में ही पहली बार सुना था
वह भी तब जब उनके बड़े बेटे को उठाकर
जेल में डाल दिया गया था

उनकी खेती अब पहले सी नहीं हो रही थी
बाढ़ पाले और सूखे से तो बच जाती थी
बाज़ार की मार से नहीं बच पाती थी
ऐसा लगता था जैसे खेती ख़ुद ही ख़ुद को खा जाती हो
आमद उनके हाथ लगने से पहले ही ग़ायब हो जाती थी
उनके खेत - घर सिमटते ही जा रहे थे
सभी कुछ चला गया
कुछ भी नहीं बचा उनके पास ख़ुद के सिवा

यह सब क्या हो रहा है उनके साथ
यही पता लगाने बड़ा बेटा गया था
उसे उठाकर जेल में डाल दिया गया था

सुनते हैं कोई गृहमंत्री है
लेकिन कौन है वह
क्या वह लड़कों को उठा - उठाकर
जेल में डालने का काम करता है
क्या वह उन्हें फिर कभी नहीं छोड़ता है
वह जेल में उनका क्या करता है
उसे युवा लड़के जेल में क्यों चाहिए होते हैं

स्त्री कहती है पुरुष से —
तुम बेटे की खोज में जाते क्यों नहीं
पुरुष कहता है — मैं नहीं जाऊँगा कहीं
मैं इस मामले में कुछ जानता ही नहीं
और अब तक तो या तो उसे
खा लिया गया होगा
या वह रोटी तो खा रहा होगा
यहाँ तो रोटी भी नहीं

संताप से काली पड़ गई वह स्त्री, बोली —
रोटी नहीं है पर हम तीन प्राणी साथ तो हैं
वह भी साथ होगा तो चारों मिलकर
कुछ तो करेंगे जब तक जीवित रहेंगे

— तुम्हारी यही ज़िद मुझे अच्छी नहीं लगती
मैं बेटे की खोज में गया और मैं भी नहीं लौटा तो
तो क्या करें हम बेटे के बारे में सोचें ही नहीं
 
दिन ढल गया रात गहरा गई
उनके हिस्से की धरती अंधकार में डूब गई
साल में दो साल में पचास साल में
उनके लिए कभी सूरज उगेगा कि नहीं
कोई पता नहीं
इतने समय बाद वे
होंगे भी कि नहीं कोई पता नहीं

     लीजिए. अब पढ़िए, इसी कविता का नलिनी तनेजा द्वारा अँग्रेज़ी में किया गया अनुवाद
                      Prabhat
              END OF AN ERA

For centuries this family of peasants
Has been tilling the land
Only in the twenty-first century
This family learnt there is something called prison
When their elder son was picked up
And hauled into jail

Working the soil was no longer what it once had been
It could somehow surmount the heavy rains the frost and the drought
But the assault of the market broke their back
It seemed the land ate itself up
Any income disappeared even before it reached their hands
The land receded to the edges of their house
All was gone
All they had was themselves

What was making this happen to them
 The elder son had set out to discover
He was picked up and hauled into prison

One hears there is a Home Minister
Who is he
Does he work at getting boys lifted
And thrown into jails
Doesn't he ever let them out
What does he do with them in the lock up
Why does he need to have young men in jails

The woman says to the man
Why don't you go in search of our boy
The man says I won't go anywhere
I know nothing of these matters
By now they might have devoured him
Or it maybe he is eating a meal
Here there isn't a morsel

Dark in her grief the woman cries
 What if there is nothing to eat
Aren't we three souls here with each other
If he were here we four together
Would manage something as long as we remain alive

This bullheadedness of yours I don't like
What if I went in search of our son and I too did not return
Should we not even think of our son then?

The day faded out the night became dark
Their bit of land became lost in darkness
In a year in two years in fifty years
Who knows for them there would ever be light
After so long
Would they even be here
Nobody knows.

(Translated from the Hindi by Nalini Taneja)