भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यूं तो कुछ कमी नहीं / श्याम सखा 'श्याम'
Kavita Kosh से
यूं तो कुछ कमी नहीं
बात लेकिन बनी नहीं
ढूंढते हैं सभी जिसे
वो तो मिलता कभी नही
प्यार धोखा लगा तुम्हें
क्या मुहब्बत हुई नहीं
दोस्त मेरा है वो मगर
छोड़ता दुश्मनी नही
व्यर्थ सब कोशिशें हुईं
याद दिल से गई नहीं
बेचकर ख्वाब सो गई
मेरी किस्मत जगी नहीं
‘श्याम जैसा सिरफ़िरा
कोई भी आदमी नहीं