ये ज़ब्त तो देखो के ज़ुबाँ कुछ ना कहे है / रवि सिन्हा
ये ज़ब्त तो देखो के ज़ुबाँ कुछ ना कहे है
दिल है के उनके सामने क़ाबू में रहे है
उस झील में उतरें करें इस शाख़ से परवाज़
उन आँखों में कुछ है ज़ुबाँ कुछ और कहे है
अहवाल<ref>वृत्तान्त (stories, affairs)</ref> कहे यूँ के रवाँ आग में पानी
वो चश्म गहे सुर्ख़ तो वो तर भी गहे<ref>कभी (sometimes)</ref> है
आग़ाज़<ref>शुरुआत (beginning)</ref> किया है किताबे-ज़िन्दगी का यूँ
तम्हीद<ref>भूमिका (preface)</ref> के इस बोझ को हर बाब<ref>अध्याय, पन्ना (chapter, page)</ref> सहे है
ये दौरे-कश-म-कश कभी तो उस तरफ़ मुड़े
दरिया-ए-दहर<ref>समय की नदी (river of time)</ref> जिस तरफ़ ख़ामोश बहे है
अफ़्कार<ref>चिन्ताएँ (worries)</ref> समन्दर हुए अरमानों की कश्ती
शायर इसे बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल<ref>बच्चों का खेल (children's play)</ref> कहे है
जो पूछ सके है तो इस मुल्को-अदब से पूछ
क्या रूह फ़ना<ref>ग़ायब, मृत (absent, dead)</ref> है के बस ता'मीर<ref>इमारत, संरचना (structure)</ref> ढहे है