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ये दो फूल / अलका सर्वत मिश्रा
Kavita Kosh से
ये दो फूल
जिनमें खो जाते हैं हम अक्सर
हमें इस कदर लुभाते हैं
कि हम भूल जाते हैं,
इन्हें मिल जाना है
मिट्टी में ही
ये खिलेंगे मगर
उपवन में ही
हम कितना भी कर लें जतन
समर्पित कर दें अपना जीवन
तन-मन-धन
और गृह वन
सिर्फ़ इनकी एक मुस्कान के लिए
किन्तु
परन्तु
व्यर्थ है सारी लगन
सूना ही लगता है अपना आँगन
और
तरसते हैं हमारे कर्ण
इनकी खिलखिलाहट के लिए