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ये राज़ है मेरी ज़िंदगी का / असग़र गोण्डवी

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ये राज़ है मेरी ज़िंदगी का
पहने हुए हूँ कफ़न खुदी का

फिर नश्तर-ए-गम से छेड़ते हैं
इक तर्ज़ है ये भी दिल दही का

ओ लफ्ज़-ओ-बयाँ में छुपाने वाले
अब क़स्द है और खामोशी का

मारना तो है इब्तदा की इक बात
जीना है कमाल मुंतही का

हाँ सीना गुलों की तरह कर चाक
दे मार के सबूत ज़िंदगी का