भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यों तो बदली हुई राहों की भी मजबूरी थी / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


यों तो बदली हुई राहों की भी मजबूरी थी
कुछ मगर फूल-सी बाँहों की भी मजबूरी थी

कुछ तो मजबूर किया उनकी अदाओं ने हमें
और कुछ अपनी निगाहों की भी मजबूरी थी

यों तो दीवाना बताते हैं हमें लोग, मगर
कुछ तेरे प्यार की राहों की भी मजबूरी थी

प्यार की दी है सज़ा हमको मगर यह तो बता,
क्या न इन शोख़ गुनाहों की भी मजबूरी थी?

यों तो इस बाग़ में हँसने के लिए आये गुलाब
दिल से उठती हुई आहों की भी मजबूरी थी