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यौवन माया / सुरंगमा यादव
Kavita Kosh से
45
पराया देश
ढूँढ़े अपनापन
नयी दुल्हन ।
46
कामुक अंधे
घूम रहे बेख़ौफ
आज दरिंदे।
47
प्रेम फुहार
धरा पर बरसा
नभ का प्यार ।
48
सूखी नलिनी
प्रिय बिन जीवन
कैसा जीवन !
49
मेघ जौहरी
बाँटे खोल तिजोरी
बूँदों के मोती।
50
खिली धूप में
रिमझिम बारिश
सूर्य नहाये।
51
मन गागर
पीड़ाओं का सागर
समेटे नारी।
52
अपनी ढाँपे
अपनों के मन की
पीड़ाएँ बाँचे ।
53
वक़्त की मार
सुकोमल पंखुड़ी
बनी कटार।
54
राह अंधेरी
दुआओं की चाँदनी
माँ ने बिखेरी।
55
यौवन माया
सुन मृगनयनी
धन पराया