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रंग-रंगीलो म्हारो देस (कविता) / शिवराज भारतीय
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रंग-रंगीलो म्हारो देस
भांत भंतीलो म्हारो देस
माथै मुगट हिमाळो सौ‘वै
समन्दर इण रा पगल्या धोवै
ताल तळाई, धोरा भाखर
रूप सांतरो मनड़ो मौ‘वै
सींचै नदियां आखो देस
हरयो-भरयो मतवळो देस।
हर दिन उछब अठै मनावै
रीत रिवाजां अठै निभावै
होळी अर गणगोरां माथै
हिळ-मिळ गीत प्रीत रा गावै।
पै‘रै रंग रंगीलो भेस
भांत भंतीलो म्हारो देस।
दीवलां रो त्युंहार दीवाळी
चोखा धूम धड़ाका ल्यावै
भाईपै भेळप री बातां
म्हानै मीठी ईद सिखावै।
नाचो गावो मौज मनाओ
वैसाखी देवै संदेस।
आजादी रो दिन जद आवै
बलिदानां री याद करावै
देस रै सारू मर मिटणै रो
टाबरियां नै पाठ पढ़ावै।
झंडो फहरै आखै देस
छैल-छबीलो म्हारो देस।