भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रंग बदलू / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'
Kavita Kosh से
बगुला चललै हंसोॅ केॅ चाल
भूली गेलै सभ पिछला हाल।
खाय छेलै मछली
पियै अबेॅ दूध
धरकै हैजा-
निकलै अबेॅ बूध
छटपट करै रे मकड़ा कँ जाल।
मछली केॅ काँटोॅ सें करै इन्साफ
पिछला तेॅ पिछला अगला साफ
टेंग-गोड़ पटकै, गिरलै दीवाल।
अतड़ी कमजोर पचलै न´् मछली
जीहोॅ क पातरोॅ तइयो लै कतली
केकड़ा डालै रे गला में जाल।
बक-बक छोड़ी केॅ साधै छै मौन
पूछै छै ‘मथुरा’ दोषी छै कौन?
मांस सब सड़लै, झुललै खाल।
मछली धिकार बगुला नै डोलै
कादी कीचड़ में सभ्भे बोलै
‘रानीपुरी’ कहाँ जैभोॅ सगठें हलाल