भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रगत रळ्योड़ी भासा / नीरज दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राजस्थानी भासा म्हारै रगत रळ्योड़ी है।
जे आ ओळी आपनै कविता री ओळी नीं लागै
तो कोई बात कोनी....
कविता सूं पैली जरूरी हुवै भासा री संभाळ
भासा री हेमाणी लियां ऊभो हूं म्हैं....

आप रै मूंढै फूल झडिय़ा—
‘मरगी राजस्थानी भासा, बाळ दी राज उण नै बरसां पैली
कोनी राज री मानता।’

कोई बात कोनी.... जद मरगी म्हारी भासा
फूल चुगण नै दूजो कुण आसी
ओ पक्को है कै आप आपरी जीवती भासा सूं
बित्ता कोनी जुडिय़ा
जित्ता म्हे म्हारी भासा सूं
जे आ बात नीं हुवती तो
इसी अबखी घड़ी
फूल झाड़ण सूं बचता आप।
जे आ ओळी आपनै कविता री ओळी नीं लागै
तो कोई बात कोनी....
राजस्थानियां रै राजस्थानी भासा रगत रळ्योड़ी है।