रचना की तलाश / रामनरेश पाठक
सुबह, दरवाजे पर
खड़ा रहता है डर
घर भर में घूमती होती है
आशंकायें
ऐन उसी वक्त रोज
एक चिड़िया मेरी मेज पर पड़े दर्पण में
लगातार ठोकरें मारती है ठक्...ठक्...ठक्
यह चिड़िया होती है
गौरैया, लवा, मैना, तोता या सुग्गा
या फिर अखबार, टेलीप्रिंटर, ट्रांजिस्टर, टेलीविजन, और
धूप और हवा और मुँहलगी महज एक औरत
सिगरेट के धुएँ के छल्ले या कॉफी की भाप
दर्पण से ठोकरों का हाल पूछना
लाजिमी नहीं है, मुंह बिराना उसकी आदत है
डर दरवाजे पर ऊँघ जाता है,
आशंकाएँ रुक जाती हैं
चिड़िया चल देती है
इतिहास के चौथे आयाम के संकारक वृत्त को
तलाश है छठी इंद्रिय और तीसरी आँख की
शाम, दरवाजे पर
खड़ा होता है तकाजा
घर भर में घूमती होती हैं मजबूरियाँ
ऐन उसी वक्त रोज
कलम और मेरे ब्रुश गुम हो जाते हैं
मेरी गिटार कोई उठा ले चुका होता है
यह कलम, ये ब्रश, यह गिटार कुछ भी हो सकती हैं
एक गहरी चुप्पी, एक अंतहीन घना जंगल
एक पत्नी, कोई जलता हुआ शहर
पंगुओं, नपुंसकों और बौनों की चीख़ भरी भीड़
या जहरीले सांपों की पिटारी
कलम ब्रश और गिटार से गुमशुदगी का
सुराग पाना लाजिमी नहीं है
होंठ पर होंठ चढ़ा लेना
इनकी आदत है
तकाजे दरवाजे पर ऊँघ जाते हैं
मजबूरियाँ रुक जाती हैं
कलम, ब्रश और गिटार भीड़ बन जाते हैं
कला और साहित्य और दर्शन के चौथे आयाम के
संघटक वृत्त को तलाश है
छठी इंद्रीय और तीसरी आँख की
रात दरवाजे पर
घर भर में घूमता होता है वर्तमान
पिछवाड़े बबूल या ताड़ के नीचे घुटनों में माथा गड़ाए
बैठा दिखता है भविष्य
ऐन उसी वक्त रोज
मेरी वेधशाला और प्रयोगशाला की
चाभियों का गुच्छा अशोक का फूल बन जाता है
यह गुच्छा भी फिर कुछ भी हो सकता है
एक गणवधु या टेलीफोन या ग्रंथागार, या छापे की मशीन
अस्त्र-शस्त्र, अपोलोट ? और वीनस या फिल्म शो
या अंतहीन यात्रा, प्रविधि, कोई महाशोक का संगीत
सामूहिक हत्या, भूख, गरीबी और रोग
योग, भक्ति और नमस्कार, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष
काल और दिक्, मिथक और विराम
अंतरिक्ष नगरों की परिकल्पनाएं और लोक कथायें
चाभियों के गुच्छे को मुखबिर बनाना लाजिमी नहीं है
ऐयारी इनकी आदतों में शुमार है
अतीत दरवाजे पर ऊँघ जाता है
वर्तमान घर में रुकता है
भविष्य स्थितप्रज्ञ, तटस्थ और निर्वेदी हो रहता है
सभ्यता और संस्कृति और विज्ञान के चौथे आयाम के समंगियों को
तलाश हैछठी इंद्रीय और तीसरी आँख की
अट्ठाइसवें मन्वंतर के चौथे युग के
पाँच हज़ार इकहत्तरवें वर्ष में भी
एक छठी इंद्रीय और तीसरी आँख को
अविरल प्रतीक्षा है एक रचना की