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रची बसी भारत की मिट्टी / रमा द्विवेदी
Kavita Kosh से
कोई कहता है हिंदी बेढ़ंगी
कोई कहता है बैरंग चिठ्ठी।
हिंदी तो है हिंद की भाषा,
रची बसी भारत की मिट्टी॥
गैरों को गले लगाना,
प्रीति हमारी है यह कैसी?
अपनों को अपमानित करना,
रीति हमारी है यह कैसी?
अपनी हिंदी अपनाने को,
यह रीति बदलनी ही होगी।
अंग्रेजी के प्रति मोह है जो,
यह सोच बदलनी ही होगी॥
तब ही हम हिंदी से,
हिन्दुस्तान बनायेंगे।
पूर्ण स्वतंत्र होंगे तब ही,
जब सब हिंदी को अपनायेंगे॥