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रब अगर मुझपे मेहरबाँ होता / रंजना वर्मा
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रब अगर मुझपे मेहरबाँ होता
खुशनुमा मेरा आसमाँ होता
साथ देती अगरचे ये दुनियाँ
तू ही तो मेरा हमनवां होता
ग़र न दहशत का दौर आता तो
इक फ़साना नया बयाँ होता
छोड़ पतवार वह न देता तो
यूँ किनारा न दास्ताँ होता
राहजन बन: न लूट लेता तो
रहबरी का ही तो गुमाँ होता
कर के हिम्मत जो बढ़ गए होते
साथ अपने भी कारवाँ होता
वक्त रहते अगर संभल जाते
रास्ता क्यों धुँआ-धुँआ होता