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रवि के खरतर शर से मारी / केदारनाथ अग्रवाल

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रवि के खरतर शर से मारी,

क्षीण हुई तन-मन से हारी,

केन हमारी तड़प रही है

गरम रेत पर जैसे बिजली

बीच अधर में घन से छूटी

तड़प रही है ।