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रहनुमा / भरत ओला
Kavita Kosh से
तू अच्छी तरह से
जानता है
यूं बक-बक करने से
समस्या का
समाधान नही हुआ करता
फुटपाथ पर खड़ा होकर
जुगाली करता है शब्दों की
औकात के बिना
आदमी का मान नहीं हुआ करता
वे सामने
कलम साधे खड़े
फितरती लोग है
खुद भूखे हैं
दूसरों को भी भूखा मारना चाहते हैं
असल बात यह है
कि वे पंथ बढ़ाना चाहते है
दो जून की रोटी नहीं
और फितरत पालता है
हम कह रहे हैं न
सोच मत !
गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है
फल की इच्छा नहीं
कर्म करो
दिल से नहीं
दिमाग से काम लो
इन झमेलों में कुछ नहीं पड़ा
रोटी शब्द नहीं
पथार देगा
जाओ !
काम पर जाओ
ईंट थापो, पकाओ
जाओ !
इस बार तुम्हें माफ किया
हम तुम्हें
आज भी पगार देगा।