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राक्षस बानर संग्राम / तुलसीदास / पृष्ठ 9
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राक्षस बानर संग्राम
( छंद संख्या 46, 47 )
(46)
जातुधानवली-मत्तकुंजरघटा,
निरखि मृगराजु ज्यों गिरितें टूट्यो।
बिकट चटकन चोट , चरन गहि, पटकि महि,
निघटि गए सुभट, सतु सबको छूट्यो।।
‘दास तुलसी’ परत धरनि धरकत ,झुकत,
हाट-सी उठति जंबुकनि लूट्यो।
धीर रघुबीरको बीर रनबाँकुरो,
हाँकि हनुमान कुलि कटकु कूट्यो।46।
(47)(छप्पै)
क्तहूँ बिटप -भूधर उपारि परसेन बरषत।
कतहुँ बाजिसों बाजि मर्दि, गजराज करषत।।
चरनचोट चटकन चकोट अरि-उर-सिर बज्जत।
बिकट कटकु बिद्दरत बीरू बारिदु जिमि गज्जत।।
लंगूर लपेटत पटकि भट, ‘जयति राम, जय!’ उच्चरत।
तुलसीस पवननंदनु अटल जुद्ध क्रुद्ध कौतुक करत।47।