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राख और भस्म / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी

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इस समय
अपने से प्रश्न कर पूछता हूँ —

विचार कर देखो
लोग क्या कहेंगे
क्या नहीं कहेंगे

सिर्फ़ यही बात
सोचते-सोचते
जीवन के अवशिष्ट दिनों को

क्या राख और भस्म में
मिल जाने दोगे ?

मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी