भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राख और भस्म / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी
Kavita Kosh से
इस समय
अपने से प्रश्न कर पूछता हूँ —
विचार कर देखो
लोग क्या कहेंगे
क्या नहीं कहेंगे
सिर्फ़ यही बात
सोचते-सोचते
जीवन के अवशिष्ट दिनों को
क्या राख और भस्म में
मिल जाने दोगे ?
मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी