भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राजधानी में बैल 6 / उदय प्रकाश

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आई०टी०ओ० पुल के पास
दिल्ली के सबसे व्यस्त चौराहे पर
खड़ा है बैल

उसे स्मृति में दिखते हैं
गोधूलि में जंगल से गांव लौटते
अपने पितर-पुरखे

उसकी आँखों के सामने
किसी विराट हरे समुद्र की तरह
फैला हुआ कौंधता है
चारागाह

उसके कानों में गूँजती रहती है
पुरखों के रँभाने की आवाज़ें
स्मृतियों से बार-बार उसे पुकारती हुई उनकी व्याकुल टेर

बयालीस लाख या सैंतालीस लाख
कारों और वाहनों की रफ़्तार और हॉर्न के बीच
गहरे असमंजस में जड़ है वह

आई०टी०ओ० पुल के चौराहे से
कहाँ जाना चाहिए उसे

पितरों-पुरखों के गाँव की ओर
जहाँ नहीं बचे हैं अब चारागाह
या फिर कनॉटप्लेस या पालम हवाई अड्डे की दिशा में

जहाँ निषिद्ध है सदा के लिए
उसका प्रवेश ।