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राजनीति / केदारनाथ अग्रवाल
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राजनीति नंगी औरत है
कई साल से जो यूरुप में
आलिंगन के अंधे भूखे
कई शक्तिशाली गुंडों को
देश-देश के जो स्वामी हैं
जो महान सेनाएँ रखते
जो अजेय अपने को कहते
ऐसा पागल लड़वाती है
आबादी में बम गिरते हैं;
दल की दल निर्दोषी जनता
गिनती में लाखों मरती है;
नष्ट सभ्यता हो जाती है-
कभी किसी के, कभी किसी के,
गले झूलकर मुसकाती है।
हार-जीत के इस किलोल से
संधि नहीं होने देती है॥
रचनाकाल: ०७-०२-१९४६