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राड़ भोभर बणावै / राजेश कुमार व्यास
Kavita Kosh से
सूरज सरीखा
रोज उगै सूपना
पूरा नीं हौवे
जणै
बण जावै
सुळगती थेपड़ियां
धूखै आखौ डील
भुंआळी खा’र
कुरळावै मन
आभै रा उतरै
लेवड़ा
पित्तरां री ओळ्यू
मांय री बळत बधावै
खूंजा संभाळूं जणै
कीं नीं मिलै
खुद सूं
खुद री
आ राड़
भोभर बणावै।