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रात भर ढूँढता फिरा जुगनू / बिरजीस राशिद आरफ़ी
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रात भर ढूँढता फिरा जुगनू
सुब्ह को ख़ुद ही खो गया जुगनू
रोशनी सब की खा गया सूरज
चाँद ,तारे, शमा, दीया, जुगनू
तीरगी<ref>अँधेरा</ref> से यह जंग जारी रख
हौसला तेरा मरहवा जुगनू
क्यों न ख़ुश हो ग़रीब की बिटिया
उसकी मुठ्ठी में आ गया जुगनू
नूर तो हर जगह पहुँचता है
कूड़ियों में पला-बढ़ा जुगनू
धुँधले-धुँधले- से हो गए तारे
मिस्ले कन्दील<ref>मोमबती की तरह
</ref> जब उड़ा जुगनू
चेहरे बच्चों के बुझ गए 'राशिद'
माँ के आँचल में मर गया जुगनू.
शब्दार्थ
<references/>