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रात हिमालय दिन शिमेला / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

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रात हिमालय दिन शिमेला।
थर-थर काँपै गुदरा विमला।

पछिया अर्जुन तीर जकाँ,
अश्वसथामा रंग हमला।

चक्की गुमसुम, चुल्हा ठंडा,
बेलना कहीं, कहीं चकला।

टाटी टुटलऽ छलनी छप्पर,
बर्फ ओस, ऐंठै कल्ला।

धरती लारऽ, ऊपर कथरी,
धोती जरजर, एक्के पल्ला।

धूर कहाँ? कहाँ छै कम्बल?
गाँव नगर, छुछ्छे हल्ला।

सेना साजऽ दुखिया सबकेॅ
पकड़ऽ नेतावा रऽ गल्ला।

-25.01.11
अंगिका लोक, जुलाई-सितम्बर, 2015