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रानी लक्ष्मीबाई / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना

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पहिला स्वतंत्रता संग्राम के
डोरी जिनका हाथ रहे
ऊ महान स्वतंत्रता-सेनानी के
लक्ष्मीबाई नाम रहे।
मोरोपन्त के आंख के पुतरी
नाना साहेब भाई रहथ
बाजीराव पेशवा कानपुर के
मानले हुनका अप्पन बेटी रहथ।
तात्या टोपे गुरु हुनकर
हुनका के तरासले रहथ
बचपन से क्रान्ति के बीया
हुनका अन्दर डालले रहथ।

कनिया-पुतरिया दल्ला-भत्ता
खेल न हुनका अबइत रहे
घुड़सवारी/तलवार बाजी
इहे हुनका फबइत रहे।
जब देखू तलवार के संगे
धम-चउकरी मचबइत रहथ
खेल-खेल में तलवार के धार के
अउरो तेज बनवइत रहथ।

गंगाधर राव झांसी के राजा
लक्ष्मी बाई के पति रहथ
दुन्नु एक दोसर के संगे
हंसी-खुसी से रहइत रहथ।

लेकिन हुनका करेजा में
धधकइत स्वतंत्रता के आग रहे
फिरंगी के मार भगाई
बस एक्केगो राग रहे।
झांसी से ऊ बिगुल बजएलन
त पूरा देश जाग उठल
ई फिरंगी के मार भगावेला
पूरा देश अब आग बनल।

स्वतंत्रता के ई चिनगारी
फिरंगी न बुझा पाएल
खिसिया-खिसिया क खंभा नोंचे
पर न आग दबा पाएल।

अइसन जुद्व लड़लन महारानी
फिरंगी तकते रह गेल
सेरनी जइसन टूट पड़लन ऊ
तोप-बंदूक धरले रह गेल।

सौ पर एक अकेले भारी
अइसन काली सन् रूप धएलन
दत्तक पुत्र के पीठ पर बान्ह के
रणचंडी बन लड़इत रहलन।
वीरता आउर बुद्वि से हुनकर
नाम के डंका बजइत रहे
पीर-फकीर हिन्दू आ मुस्लिम
सब हुनकर गीत गवइत रहे।
लक्ष्मीबाई के नाम अमर हए
जबतक धरती-आसमान रहत
हुनकर किरती के पताका
जुग-जुग में लहराइत रहत।