राम की कृपालुता-2
( छंद संख्या3, 4 )
(3)
बेद बिरूद्ध मही, मुनि साधु ससोक किए सुरलोकु उजारो।
और कहा कहौं , तीय हरी, तबहूँ करूनाकर कोपु न धारो।।
सेवक-छोह तें छाड़ी छमा , तुलसी लख्यो राम! सुभाउ तिहारो।
तौलौं न दापु दल्यौ दसकंधर, जौलौं बिभीषन लातु न मारो।3।
(4)
सोक समुद्र निमज्जत काढ़ि कपीसु कियो, जगु जानत जैसो।
नीच निसाचर बैरिको बंधु बिभीषनु कीन्ह पुरंदर कैसो।।
नाम लिय अपनाइ लियो तुलसी-सो , कहौं जग कौन अनैसो।
आरत आरति भंजन रामु, गरीबनेवाज न दूसरो ऐसो।4।