भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राम भजो रे प्रह्लाद / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

राम भजो
राम भजो रे प्रह्लाद सब तजि राम भजो

हिरणकश्यप गुरु मँगवायो पढ़ो पाठ प्रह्लाद
अगर दिगर गुरु हम न पढ़बै हमहुँ पढ़ब एक राम
सब तजि राम भजो
राम भजो रे प्रह्लाद सब तजि राम भजो

हिरणकश्प पुत्र प्रह्लाद को बाँधे खंब लगाए
कहे प्रह्लाद से हिरणकश्यप कहाँ तेरो राम सहाय
सब तजि राम भजो
राम भजो रे प्रह्लाद सब तजि राम भजो

कहे पिता तुझे सूझत नाहीं घट घट बसियो राम
हममें तुममें खड्ग खंब में जित देखो उत राम
सब तजि राम भजो
राम भजो रे प्रह्लाद सब तजि राम भजो