रितू रसगर आ गेलऽ तू / राम सिंहासन सिंह
पीत वासना आ गेल तू, मीत रसना आ गेल तू
सिसिर के बनवास देके, तृसित पी के पियास लेके
विटप के जो हरित पट, उतरन के छलना आ गेल तू
पित वासना आ गेल तू...
माघ के मधुमास तू हऽ, मद रिसक के चास तू हऽ
चिर खड़े स्वागत में तेरे, आस हरना आ गेल तू
पित वासना आ गेल तू...
मौन पुरवाई होयल अब, नग्न पछिया नाच रहल जब
बाहुबलियों के भुजा मंे, प्रीत पगना आ गेल तू
पित वासना आ गेल तू...
तू चमकल काँच जइसन, टूट रहलऽ हे साँच जइसन
बीन भँवरा भी बजयलक, हृदय डसना आ गेल तू
पित वासना आ गेल तू...
लड़खड़ाईत चाल जइसन, झूलस रहल हे खाल अइसन
सिर-सफेदी रंग सकल का, विविध बरना आ गेल तू
पित वासना आ गेल तू...
आग से जलइत पलासन, वासना भरइत कुलासन
पास सज के तू चल अब, रितु रसगर आ गेल तू
पित वासना आ गेल तू...