रिम-झिम सावन / राम सिंहासन सिंह
बरस रहल हे सावन रिम-झिम गावे लोरी पुरवईया,
बदरा नाच रहल हे नभ में ले-ले के ऊ अँगड़ईया।
बिजरी चमक रहल हे घन में गोरी के बिंदिया जईसन,
रह-रह याद सतावे हमरा अँखिया में निंदिया कईसन।
हरिअर साड़ी झक-झक पेनहलक देखऽ ई धरती मैया।
बरस रहल हे सावन रिम-झिम गावे लोरी पुरवईया।
बूँद धार से ताल-तलईन में उठ रहल बुलबुला
बड़ा कड़ाही में जैसे कोई छान रहल हे रसगुल्ला
देख-देख मुँह पानी अइलो तू सनेस लयब कहिया
बरस रहल हे सावन रिमझिम गावे लोरी पुरवईया।
सोनी-मोनी पानी में कागज के नाव बहावऽ हे
हे कतार में खड़ा बुतरूअन छुक-छुक रेल चलाव हे
सीटी बजा-बजा के दौड़े जइसे गोड़ लगल पहिया
बरस रहल हे सावन रिमझिम गावे लोरी पुरवईया।
सखी सहेली संग बसन्ती गाना-गोटी खेल रहल
कान झिकोरी के दुख के रुकमिनिया हँस-हँस झेल रहल
लड़-लड़ के सब मिल-मिल जा हथ अईसन हे उनकर नेहिया
बरस रहल हे सावन रिमझिम गावे लोरी पुरवईया।
बाग-बगीचा झूला लगलौ मीठ रेघ से गीत गुंजल
उज्जर, करिया, लाल, बैगनी धरती पर भी मेघ सजल
चढ़ल जवानी मेघ परी के रह-रह के जाहे लहिया
बरस रहल हे सावन रिमझिम गावे लोरी पुरवईया।
कहीं गेंद हे जमल कब्बडी खेल रहल सब बुतरून बाल
डोल पता आउ लुका-चोरी खेल-खेल सब हाल नेहान
राधा के संग खेल हे जईसे ब्रज में कन्हईया।
बरस रहल हे सावन रिम-झिम गावे लोरी पुरवईया।
उमड़ल-घुमड़ल बादर के संग उड़ रहलौ बगुला-मैना
लगहर गाय चरा रहलौ हे चरवाहा ले-ले पैना
घर-घर में अब दूध-दही के जईसे बह गेलौ नदिया।
बरस रहल हे सावन रिम-झिम गावे लोरी पुरवईया।
चौहट गा-गा के सब हुलस रहल हे मनवाँ में
लक्ष्मी आऊ सरस्वती जैसे आ गेलन हे अँगना में
गोर कंठ मधुगीत बरस के लुटा रहल रस के बुँदिया।
बरस रहल हे सावन रिम-झिम गावे लोरी पुरवईया।
भेल-भोर किसान निकलन हर-जुबाढ़ हंेगा लेके
घरवाली चूल्हा सुलगा के मोट-मोट रोटी सेके
चूड़ी खन-खन बजा-बजा के बना रहल आँटा लोईया।
बरस रहल हे सावन रिम-झिम गावे लोरी पुरवईया।
बरखा के पानी से परती धरती के भगिया जगलई
मोरी भेल जवान धान के रोपा अब जलदी लगतई
पहरोपन के दिन चलतई दमभर पुड़ी आऊ तसमईया।
बरस रहल हे सावन रिम-झिम गावे लोरी पुरवईया।