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रिमझिम जैसी / अभिज्ञात
Kavita Kosh से
तुम मेरे जीवन के मरुथल
में सावन की रिमझिम जैसी
आई हो लेकर रतनारे
नैनों में कुछ बातें ऐसी!
जीने का मतलब था खोया
तुमने ही आ अंकुर बोया
अब हँसने का मौसम आया
रोता था तब जी भर रोया
हर इक बात मेरी सरगम है
जब तुम हो इक सुमधुर लय-सी!
मिलने को आतुर मन मेरा
नाम तुम्हारे साँझ-सवेरा
निर्मम दुनिया के जंगल में
तुम ही मेरे एक बसेरा
छूट गया हर एक विशेषण
तुम ही मेरा कुल परिचय-सी।