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रिश्ते हुए दुकान / इसाक अश्क
Kavita Kosh से
विज्ञापन हो गई
ज़िन्दगी / रिश्ते हुए दुकान
भीतर से इसलिए
सभी हैं / घायल-लहू लुहान
जाने किस
जन-समूह, भीड़ में -
खोया अपनापन
परिचित तो हैं
यहाँ सभी पर -
कोई नहीं स्वजन
घर होकर रह गए
ईंट-पत्थर के / सख़्त मकान
हमें नहीं होता
औरों की
पीड़ा का अहसास
भावरूप
भावुकता लगती है -
विशुद्ध बकवास
पैठ नहीं पाती
अन्तर तक / मुँह देखी मुस्कान