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रिश्तों को टूटने से बचाया न जा सका / रवि ज़िया

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रिश्तों को टूटने से बचाया न जा सका
लेकिन ये सच ज़बान पे लाया न जा सका

गुज़री तमाम उम्र उसी की पनाह में
इक घर जो असलियत में बनाया न जा सका

ख़ामोश पत्थरों की सदाएँ अजीब थी
तेशा फिर उस के बाद उठाया न जा सका

कहने को हम भी शहर में आबाद हो गये
इक दश्त फिर भी दिल से भुलाया न जा सका

अहदे-सफ़र में वक़्त बहुत महरबाँ रहा
अफ़सोस तेरे साथ बिताया न जा सका

कोई समझ न पाया 'ज़िया' तिश्नगी तेरी
वो प्यास क्या थी जिस को बुझाया न जा सका