रिश्तों से बगावत क्यूँ / सुधा ओम ढींगरा
जब पूछा उनसे
रिश्तों से बगावत क्यूँ ?
रिश्ते तो
भले
चंगे
सुख देने वाले होतें हैं .
भर्राए गले
गालों तक
लुढ़क आए
आँसुओं को समेटते वें बोलीं--
रिश्तों ने
समाज- सम्मुख
बलात्कार कर
नंगे बदन
गाँव में घुमाया था.
माँ ने टाँगे पकड़
बच्चा गिरवाया था
दूसरे कबीले
के लड़के से प्यार कर
ब्याह जो बनाया था.
मिलीभगत थी
पुलिस की भी
डराया था
धमकाया था
माँ बाप को तंग करेंगें
षड्यंत्र रचाया था
अपराधियों के खिलाफ
रपट वापिस लेने का
दबाब डलवाया था.
डटी रहीं थीं वें
रिश्तों से मुंह मोड़
समाज और इसके
ठेकेदारों से लड़
स्वाभिमान बचाया था.
औरतों के
अधिकारों का तमाशा बना
पुरुष
उसे अपने
उस साम्राज्य में
ले जाना है चाहता
जो सदियों के प्रयत्नों से
औरत को कमज़ोर बना
उसने बनाया था.
परिवार से दुत्कारी
रिश्तों से नक्कारी
पीड़ित , प्रताड़ित
ये वीरांगनाएँ
एक दूजे का साथ देतीं
न्याय को पुकारतीं
अधिकारों को गुहारतीं
बार -बार बदन ढकतीं
जो पुरुषों के
अनर्गल ,
बेवजह प्रश्नों से
उधड़-उधड़ जाता है.
सिर पर आँचल ओढ़ती
सब की सब कह उठीं --
क्या अब भी पूछना है
रिश्तों से बगावत क्यूँ ?