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रीढ़ / गिरिजा अरोड़ा
Kavita Kosh से
एक ही बीज में रहते थे
पल्लव और जड़
कुछ ही दिन का पोषण था
उनके पास मगर
कुछ मजबूरी, कुछ जिज्ञासा
दोनों के थी अंतर
सहमति से तोड़ा
उन्होंने सुरक्षा कवच
जड़ जड़ गई धरती में
संभाला धरातल
रंग बिरंगी दुनिया देखने
बाहर आया पल्लव
एक मूक अनुबन्ध से
जुड़ा उनका जीवन
तना और पत्ते
जब तक देते रहेंगेहवा, धूप, पानी
और जड़ देती रहेगी खाद
वृक्ष खड़ा रहेगा
सीधी रीढ़ के साथ