भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रीढ़ / गिरिजा अरोड़ा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक ही बीज में रहते थे
पल्लव और जड़
कुछ ही दिन का पोषण था
उनके पास मगर

कुछ मजबूरी, कुछ जिज्ञासा
दोनों के थी अंतर
सहमति से तोड़ा
उन्होंने सुरक्षा कवच

जड़ जड़ गई धरती में
संभाला धरातल
रंग बिरंगी दुनिया देखने
बाहर आया पल्लव

एक मूक अनुबन्ध से
जुड़ा उनका जीवन

तना और पत्ते
जब तक देते रहेंगेहवा, धूप, पानी
और जड़ देती रहेगी खाद
वृक्ष खड़ा रहेगा
सीधी रीढ़ के साथ