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रीढ़ की हड्डियाँ / मदन कश्यप
Kavita Kosh से
रीढ़ की हड्डियाँ
मानकों की तरह होती हैं
टुकड़ों-टुकड़ों में बँटी फिर भी जुड़ी हुई
ताकि हम तन और झुक सकें
यह तो दिमाग को तय करना होता है
कि कहाँ तनना है कहाँ झुकना है
मैं एक बच्चे के सामने झुकना चाहता हूँ
कि प्यार की ऊँचाई नाप सकूँ
और तानाशाह के आगे तनना चाहता हूँ
ताकि ऊँचाई के बौनेपन को महसूस कर सकूँ !