भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रीसलो मीनख / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जे आवै
तातै दूध पर
मळाई
तो आवै
रीसलै रै
मूंडै पर
लुनाई,
राखै
माथै नै ठंडो
बो बाजै
हिमाळो
नही‘स
सै भाटा
कोई धोळो‘र
कोई काळो !