भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रुक जा ओ जाने वाली रुक जा / शैलेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रुक जा ओ जाने वाली रुक जा
मैं तो राही तेरी मंज़िल का
नज़रों में तेरी मैं बुरा सही
आदमी बुरा नहीं मैं दिल का

देखा ही नहीं तुझको, सूरत भी न पहचानी
तू आके चली छम से, यूँ धूप के बिन पानी
रुक जा ...

मुद्दत से मेरे दिल के, सपनों की तू रानी है
अब तक न मिले लेकिन, पहचान पुरानी है
रुक जा ...

आ प्यार की राहों में, बाहों का सहारा ले
दुनिया जिसे गाती है, उस गीत को दोहरा ले
रुक जा ...