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रूंख रो अंतस / मधु आचार्य 'आशावादी'
Kavita Kosh से
ना खावै
ना पीवै
तिरकाळ तावड़ै मांय झुळसै
फेरूं ई नीं कळपै
कोई नीं जाणै उणरी मनगत
किणनै बतावै
किण सूं सुणै
मांय रो मांय बळै
पण करै कांई
रूंख है
लोगां नै खाली देवै
हरियाळी रो लखाव
खुद रै दुख रो
दूजां नै नीं हुवण देवै
अैसास
रूंखड़ा, थनै लुळ-लुळ सलाम।