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रूकमिनी दास / मथुरा प्रसाद 'नवीन'
Kavita Kosh से
सुनऽ हियै कि
भगवान दे हथिन
छप्पर फाड़ के
हम तो आय तक
कोठे तोड़ के देवैत देखलूँ हें
गरीब के मांस
राजा के खखोर के दवैत देखलूँ हे
दुर्बलो दैव घातकः
हम चौराहा पर खड़ा ही,
देख रहलूँ हे
एगो लास,
मर गेलै ठाकुरबाड़ी के
रूकमिनी दासबज रहले हे
संख, घड़ीघंट अउ ढोल,
‘राम नाम सत्य हे’ के बोल
कर देलक हे
बेचारा गरीब,
हरदम रहऽ हे
मौत के करीब
रंथी के पिछुआ रहले हे
सब साधू,
समदन गा रहले हे।
बुतरू रंथी छेक रहल हे
पुजारी मखाना
औउ पैसा फेंक रहल हे।