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रूटीन / हरीश बी० शर्मा
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लोरियों की लयकारी
हौले-हौले थपकियां
ठाकर
लाजिमी है तेरा पौढ़ना
लेकिन
तेरे सुदामा-ग्वाले भूखे सोये हैं
मंगताई से भी जब पार नहीं पड़ी
भूख से खूब रोये हैं
तेरे नाम की टेर भी लगाई कन्हाई
वैसे ये रूटीन है
अब मावड़ी की बारी ही
दिन-भर की भूखी
अब दूजों की भूख मिटाएगी
तब रेट मिलेगी
तुम्हारे राजभोग के साथ
उन्हें भी रोटी नसीब हो जाएगी।