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रूसणौ / सत्यप्रकाश जोशी

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भलां ई जुपावौ दीवा मै‘ल में
भलां ई सजावौ फूलां सेज।
कोनी छोड़ां ओ म्हारा रूसणा।

भलां ई लडावै म्हांनै दूतियां,
भलां ईं मनावौ म्हांनै कांन्ह।
कोनी छोड़ां ओ म्हारा रूसणा।

वरण क्यूं दियौ थे छांनै बादळयां,
हांसी क्यूं दीवी छांनै बीज।
कोनी छोड़ां ओ म्हारा रूसणा।

पुहपां नै छांनै मीठा मुळकणां,
कोयल नै दिया छांनै बैण।
कोनी छोड़ां ओ म्हारा रूसणा।

नदियां रळकंतां थांनै कुण बरजिया,
छांनै क्यूं सांस भराई पूंन।
कोनी छोड़ां ओ म्हारा रूसणा।

प्रीत करतां थांनै कण बरजिया,
छांनै क्यूं कांमणियां नै नेह।
कोनी छोड़ां ओ म्हारा रूसणा।

रूसणौ बुलावै नैड़ा पीव नै,
रूसणौ बधावै झाझा हेत।
कोनी छोड़ां ओ म्हारा रूसणा।