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रूह की छत पर आओ / त्रिपुरारि कुमार शर्मा
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तुम छत पर अक्सर दिखाई देती हो
या फिर देखती रहती हो दरीचे से कभी
उस वक़्त जब पानी बरसता रहता है
शायद तुम्हें बरसात पसन्द बहुत है
मेरी रूह की छत पर आओ जो कभी
या मुझमें देखो मेरी पलकों पे बैठ कर
सीने में बरसती है तेरे ख़्याल की बूँदें
मैं भीगता रहता हूँ तुम्हारी अदाओं से